लेखक : अशोक कुमार झा - प्रधान सम्पादक - रांची दस्तक एवं PSA लाइव न्यूज़ ।
पिछले सौ वर्षों में दुनिया का राजनीतिक नक्शा कई बार बदला है, लेकिन एक सच्चाई लगभग स्थिर रही — अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों का दबदबा। चाहे प्रथम विश्व युद्ध हो, द्वितीय विश्व युद्ध या शीत युद्ध, पश्चिम ने हमेशा सैन्य ताकत, आर्थिक नियंत्रण और तकनीकी श्रेष्ठता के बल पर अपने हित साधे।
लेकिन अब समय बदल रहा है। 21वीं सदी के तीसरे दशक में हिंदुस्तान एक ऐसे मुकाम पर खड़ा है,
जहाँ से वह न सिर्फ एशिया, बल्कि
पूरी दुनिया की शक्ति-संतुलन की कहानी बदल सकता है। इसकी वजहें कई हैं —
·
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था
·
विशाल युवा जनसंख्या
·
तेज़ी से उभरता रक्षा उत्पादन और तकनीकी सेक्टर
·
भू-राजनीतिक स्थिति — हिंद
महासागर, अरब सागर और एशिया के मध्य में एक
रणनीतिक स्थान
हिंदुस्तान अब केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं है, बल्कि वह एक वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है। यही बात अमेरिका, यूरोप, और चीन के लिए चिंता का कारण है। क्योंकि अब खेल का मैदान बदल रहा है — जहाँ पहले पश्चिम अपने एजेंडे के मुताबिक़ दुनिया को घुमाता था, अब हिंदुस्तान अपनी शर्तों पर सौदे करने की स्थिति में पहुँच रहा है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों की चालें:
हिंदुस्तान को रोकने की रणनीति
अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी दशकों
से इस बात के आदी हैं कि बाकी देश उनकी बनाई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के हिसाब से
चलें। लेकिन जब कोई देश उस व्यवस्था को चुनौती देने लगता है, तो यह ‘डीप स्टेट’ सक्रिय
हो जाता है।
हिंदुस्तान के साथ यही हो रहा है।
·
तेल सौदे पर दबाव – रूस
से सस्ते तेल की खरीद पर अमेरिका ने बार-बार चेतावनी दी, लेकिन
हिंदुस्तान ने अपने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी और सस्ते दाम पर ऊर्जा
सुनिश्चित की। इससे अमेरिका के पेट्रोलियम बाजार में अरबों डॉलर का घाटा हुआ।
·
S-400 डिफेंस सिस्टम पर नाराज़गी – अमेरिका
ने प्रतिबंध की धमकी दी, लेकिन हिंदुस्तान ने रूस से S-400
मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी, जिससे
वायु रक्षा क्षमता विश्वस्तरीय हो गई।
·
टैरिफ़ विवाद – पिछले
11 वर्षों से हिंदुस्तान अमेरिका पर समान
टैरिफ़ लगा रहा है, लेकिन अब जब हिंदुस्तान का निर्यात
बढ़ने लगा है, तो अचानक यह अमेरिका के लिए ‘समस्या’ बन गया।
असल वजह?
ऑपरेशन सिंदूर ने अमेरिका को झटका दिया। यह सैन्य
अभियान इतना सफल रहा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और पेंटागन के रणनीतिकारों को
अहसास हो गया कि हिंदुस्तान सीमित संसाधनों के बावजूद विश्वस्तरीय सैन्य ऑपरेशन कर
सकता है — और वो भी ऐसी सटीकता से, जो अमेरिका, रूस और इज़राइल के लिए भी कठिन मानी
जाती है। नूर बेस जैसे अमेरिकी सहयोगी ठिकानों का नष्ट होना यह संकेत था कि
हिंदुस्तान की क्षमता सिर्फ़ रक्षात्मक नहीं, बल्कि
आक्रामक भी है।
अब अमेरिका की चिंता दोहरी है —
1.
चीन
का पतन: चीन की जनसंख्या संकट और आर्थिक
समस्याएं उसे अगले दशक में जापान जैसी स्थिर लेकिन कमजोर स्थिति में ले जा सकती
हैं।
2. हिंदुस्तान का उदय: अगर कोई शक्ति अगले 20 साल में अमेरिका को चुनौती दे सकती है, तो वो हिंदुस्तान है।
रूस और चीन के साथ हिंदुस्तान की
रणनीतिक साझेदारी: नई वैश्विक शक्ति संतुलन की ओर
अमेरिका और यूरोप का वर्चस्व पिछली सदी
में स्थापित हुआ था, लेकिन 21वीं सदी की दूसरी तिमाही में दुनिया का पावर सेंटर धीरे-धीरे
एशिया की ओर खिसक रहा है। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण है — हिंदुस्तान, रूस
और चीन का सामरिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक सहयोग।
1.
हिंदुस्तान–रूस:
समय-परीक्षित दोस्ती
- रक्षा सौदे: रूस
दशकों से हिंदुस्तान का सबसे भरोसेमंद रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है। ब्रह्मोस
मिसाइल से लेकर S-400 डिफेंस सिस्टम तक, कई
संयुक्त परियोजनाओं ने हिंदुस्तान की सैन्य शक्ति को मजबूती दी है।
- ऊर्जा सहयोग: रूस
से सस्ते तेल और गैस की खरीद ने हिंदुस्तान की ऊर्जा सुरक्षा को स्थिर किया
है और पश्चिमी देशों की आर्थिक नाकेबंदी को अप्रभावी बना दिया है।
- यूएन और अंतरराष्ट्रीय मंच: रूस
हमेशा से यूएन सुरक्षा परिषद में हिंदुस्तान के हितों की रक्षा करता रहा है, चाहे
वो कश्मीर का मुद्दा हो या परमाणु कार्यक्रम का समर्थन।
2.
हिंदुस्तान–चीन:
प्रतिस्पर्धा में सहयोग
- सीमा विवादों के बावजूद: दोनों
देशों के बीच भू-सीमा विवाद हैं,
लेकिन आर्थिक मंचों जैसे BRICS, SCO में
दोनों का सहयोग महत्वपूर्ण है।
- एशियाई बाजार का दबदबा: हिंदुस्तान
और चीन मिलकर 2.8 अरब लोगों का बाजार बनाते हैं, जो
अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों की तुलना में कहीं बड़ा है।
- डॉलर पर निर्भरता कम करना: चीन
पहले से युआन-आधारित लेनदेन को बढ़ावा दे रहा है, और
हिंदुस्तान भी रूस के साथ रुपया-रूबल व्यापार शुरू कर चुका है। यह डॉलर के
वर्चस्व को सीधी चुनौती है।
3.
त्रिकोणीय सहयोग का महत्व
अगर हिंदुस्तान, रूस
और चीन तीनों एक सामरिक-आर्थिक ब्लॉक बनाते हैं,
तो इसका असर पूरी दुनिया की शक्ति
संरचना पर पड़ेगा:
- सैन्य शक्ति: तीनों
के पास संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी सेनाएँ, परमाणु
हथियार, और अत्याधुनिक तकनीक है।
- आर्थिक शक्ति: यह
ब्लॉक दुनिया की GDP का लगभग 35% और
वैश्विक व्यापार का 30% नियंत्रित करेगा।
- ऊर्जा संसाधन: रूस
के पास विशाल ऊर्जा भंडार, चीन के पास विनिर्माण क्षमता, और
हिंदुस्तान के पास सेवा और तकनीकी विशेषज्ञता —
तीनों मिलकर आत्मनिर्भरता का मॉडल
बन सकते हैं।
4.
अमेरिका और पश्चिम के लिए चुनौती
अगर यह गठबंधन मजबूत होता है, तो:
- NATO की
सामरिक बढ़त घटेगी।
- IMF और
वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थानों का असर कम होगा।
- डॉलर की पकड़ ढीली पड़ जाएगी।
- एशिया केंद्रित नए वित्तीय और
सैन्य संगठन बन सकते हैं।
हिंदुस्तान के खिलाफ गुप्त साज़िशें और
आने वाले खतरे
हिंदुस्तान की बढ़ती ताक़त और वैश्विक
मंच पर उसकी निर्णायक भूमिका ने कई पुराने साम्राज्यवादी ताक़तों की नींद उड़ा दी
है। अमेरिका, उसके यूरोपीय सहयोगी,
और कुछ एशियाई प्रॉक्सी ताक़तें — सब
हिंदुस्तान के विकास को रोकने के लिए अपने-अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। यह सब
सिर्फ़ राजनीति नहीं है, बल्कि
एक संगठित, बहु-स्तरीय
साज़िश है।
1.
डीप स्टेट और उसके औजार
"डीप स्टेट" यानी वो अदृश्य ताक़तें जो सरकारों के पीछे
बैठकर फैसले करवाती हैं — इनमें शामिल हैं सैन्य-औद्योगिक लॉबी, बहुराष्ट्रीय
कॉरपोरेट समूह, खुफ़िया एजेंसियों के नेटवर्क और ग्लोबल मीडिया का एक हिस्सा।
- उद्देश्य: हिंदुस्तान
को वैश्विक नेतृत्व की दौड़ से हटाना।
- रणनीतियाँ: आर्थिक
दबाव, राजनीतिक अस्थिरता, और
मीडिया के जरिए जनमत को भटकाना।
- तरीके:
- हिंदुस्तान में जातीय और धार्मिक
विभाजन को बढ़ावा देना।
- चुनावों को प्रभावित करने के लिए
फंडिंग और प्रचार।
- घरेलू उद्योगों पर अंतरराष्ट्रीय
प्रतिबंध या केस लादना।
2.
संभावित टकराव की योजना
पिछले कुछ वर्षों में, हिंदुस्तान
ने न सिर्फ़ अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया है,
बल्कि ऑपरेशन
सिंदूर जैसे अभियानों से साबित किया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद
हमारी सेना वर्ल्ड-क्लास है। यही पश्चिम के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
- युद्ध भड़काना: पाकिस्तान
को उकसाकर LOC पर तनाव बढ़ाना।
- दो मोर्चों का खतरा: चीन
के साथ सीमाई विवाद को अचानक गर्म करना।
- समुद्री नाकेबंदी: हिंद
महासागर में अमेरिकी नौसेना की मौजूदगी बढ़ाकर हिंदुस्तान की समुद्री आपूर्ति
लाइनों पर दबाव डालना।
3.
राजनीतिक नेतृत्व को निशाना बनाना
इतिहास गवाह है कि जब कोई नेता
राष्ट्रीय संप्रभुता और आत्मनिर्भरता की राह पर चलता है, तो
विदेशी ताक़तें उसे हटाने के लिए हर संभव तरीका अपनाती हैं।
- हत्या या असफल बनाने की साज़िश: ख़ुफ़िया
एजेंसियों के ऑपरेशन, भाड़े के एजेंट, या
“दुर्घटनाएं”।
- चरित्र हनन अभियान: अंतरराष्ट्रीय
मीडिया और NGOs के जरिए प्रधानमंत्री और सरकार की
छवि खराब करना।
- आर्थिक संकट पैदा करना: मुद्रा
को अस्थिर करना, शेयर बाज़ार में गिरावट लाना।
4.
मित्र देशों को तोड़ने की कोशिश
हिंदुस्तान, रूस
और चीन के बढ़ते सहयोग को रोकने के लिए,
पश्चिमी खेमे का सबसे बड़ा हथियार है ‘डिवाइड एंड रूल’।
- रूस को यूक्रेन युद्ध में उलझाए
रखना।
- चीन पर आर्थिक प्रतिबंध और
हिंदुस्तान से उसके रिश्ते बिगाड़ना।
- BRICS और
SCO जैसे मंचों में फूट डालना।
5.
अगले 4 साल:
निर्णायक दौर
प्रधानमंत्री मोदी खुद कह चुके हैं कि
उन्हें व्यक्तिगत रूप से इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यह बयान सिर्फ़
भावनात्मक नहीं है, बल्कि खुफ़िया रिपोर्टों पर आधारित चेतावनी है।
- आर्थिक दबाव: IMF और
विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के जरिए नीतिगत दबाव।
- मीडिया युद्ध: सोशल
मीडिया पर फर्जी खबरों और बॉट नेटवर्क का इस्तेमाल।
- आंतरिक अस्थिरता: विपक्षी
पार्टियों को बाहरी फंडिंग और समर्थन।
आने वाली लड़ाई में हिंदुस्तान की
रणनीति और जीत का रोडमैप
हिंदुस्तान जिस दौर में प्रवेश कर रहा
है, वह केवल आर्थिक विकास का नहीं बल्कि वैश्विक
शक्ति बनने की निर्णायक जंग
का समय है। हमारे सामने दुश्मनों का
गठजोड़, प्रॉक्सी युद्ध,
आर्थिक दबाव और राजनीतिक षड्यंत्र — सब
एक साथ हैं। लेकिन हिंदुस्तान के पास एक ऐसा रोडमैप है, जो
हमें न केवल सुरक्षित रखेगा बल्कि दुनिया में नेतृत्व की कुर्सी पर बिठाएगा।
1.
सैन्य रणनीति — "रक्षा
नहीं, निर्णायक जीत"
- स्वदेशी हथियार उत्पादन: अगले
5 वर्षों में फाइटर जेट, एयरक्राफ्ट
कैरियर, और हाई-टेक ड्रोन का 80% घरेलू
उत्पादन।
- दो मोर्चों पर युद्ध की तैयारी: पाकिस्तान
और चीन दोनों को एक साथ जवाब देने के लिए थल,
जल,
वायु सेना के संयुक्त अभ्यास को
दोगुना करना।
- स्पेस और साइबर डिफेंस: दुश्मन
के सैटेलाइट और नेटवर्क को पंगु करने के लिए आक्रामक साइबर यूनिट और ASAT हथियारों
का विकास।
2.
आर्थिक हथियार — "विकास
ही प्रतिशोध"
- ऊर्जा आत्मनिर्भरता: रूस, मध्य
एशिया और ईरान से लंबे समय के तेल-गैस समझौते,
जिससे अमेरिका की पाबंदियों का असर
खत्म हो।
- वैश्विक व्यापार गलियारे: चाबहार
पोर्ट, INSTC और अफ्रीका-एशिया कॉरिडोर में
हिंदुस्तान की निर्णायक भागीदारी।
- रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा
बनाना: BRICS मुद्रा व्यवस्था में हिंदुस्तान की
केंद्रीय भूमिका, जिससे डॉलर पर निर्भरता घटे।
3.
कूटनीति — "मित्रता
का गठबंधन, दुश्मनों का अलगाव"
- रूस और चीन के साथ सुरक्षा समझौते: सैन्य
खुफ़िया साझा करना और संयुक्त हथियार विकास।
- ग्लोबल साउथ नेतृत्व: अफ्रीका, लैटिन
अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में निवेश और राजनीतिक समर्थन।
- पश्चिमी विभाजन का फायदा: यूरोप
और अमेरिका के बीच व्यापारिक मतभेदों का उपयोग,
ताकि पश्चिमी एकता कमजोर हो।
4.
आंतरिक मोर्चा — "एकजुट
राष्ट्र, अटूट संकल्प"
- राष्ट्रीय एकता अभियान: शिक्षा, मीडिया
और सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदुस्तानी पहचान को सर्वोपरि रखना।
- सुरक्षा एजेंसियों की ताक़त बढ़ाना: RAW, IB और
NIA को आधुनिक उपकरण और कानूनी अधिकार।
- फर्जी खबर नियंत्रण: सोशल
मीडिया पर बॉट नेटवर्क और फेक न्यूज़ के खिलाफ AI आधारित
निगरानी।
5.
आने वाले 4 साल
— "चुनौती और अवसर"
- यह समय न सिर्फ़ बचाव का है, बल्कि वैश्विक मंच पर कब्ज़ा करने का।
- अगर हिंदुस्तान अपनी सैन्य, आर्थिक
और कूटनीतिक रणनीति को सही तरह से लागू करता है, तो
2030 तक हम न केवल एशिया की सबसे बड़ी
शक्ति होंगे बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवाद का अंत करने वाले राष्ट्र भी बन सकते
हैं।

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