नवरात्रि शक्ति, भक्ति, संयम और संस्कारों का महान पर्व : संजय सर्राफ
विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता, बल्कि जीवन मूल्यों, सामाजिक एकता और आध्यात्मिक उन्नति का सशक्त संदेश देता है। इन्हीं पर्वों में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है, जो इस वर्ष सोमवार, 22 सितंबर से आरंभ होकर 1 अक्टूबर तक चलेगा।
श्री सर्राफ ने बताया कि यह पर्व माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का महापर्व है। नवरात्रि का अर्थ है “नौ रातों का उत्सव”, जिसमें शक्ति, साधना और आत्मशुद्धि का समन्वय होता है। अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चलने वाले इस पर्व में देवी शक्ति पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और असुरों का संहार करती हैं।
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप
इन नौ दिनों में नवदुर्गा की आराधना की जाती है—
- शैलपुत्री – आरंभिक ऊर्जा का प्रतीक
- ब्रह्मचारिणी – तपस्या और साधना की देवी
- चंद्रघंटा – शांति और शक्ति का संतुलन
- कूष्मांडा – ब्रह्मांड सृजन करने वाली शक्ति
- स्कंदमाता – मातृत्व और संरक्षण की देवी
- कात्यायनी – दुर्गा का युद्ध रूप
- कालरात्रि – नकारात्मकता का नाश करने वाली
- महागौरी – करुणा और शुद्धता की प्रतीक
- सिद्धिदात्री – ज्ञान और सिद्धियों की दात्री
पूजा-पाठ और अनुष्ठान
नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना कर देवी का आवाह्न किया जाता है। नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती पाठ, मंत्रोच्चारण और आराधना का आयोजन होता है। श्रद्धालु सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और संयम, साधना तथा आत्मशुद्धि पर विशेष बल देते हैं।
गुजरात और पश्चिम भारत में गरबा और डांडिया के आयोजन सांस्कृतिक उत्सव का अद्भुत रूप पेश करते हैं। वहीं, महाअष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है, जिसमें नौ कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर पूजित और भोजन कराया जाता है।
आध्यात्मिक महत्व
श्री सर्राफ ने कहा कि नवरात्रि केवल देवी की आराधना का पर्व भर नहीं है, बल्कि यह समय आत्मचिंतन और आत्मविकास का भी होता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में हर “असुर”—अहंकार, क्रोध, लोभ और मोह पर विजय संभव है, यदि श्रद्धा, संयम और भक्ति हमारे जीवन का हिस्सा बने।
उन्होंने कहा—
“यह पावन पर्व हम सभी को अवसर देता है कि हम अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागकर सकारात्मकता का दीप जलाएँ। माँ दुर्गा से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें शक्ति, सद्बुद्धि और सेवा का भाव प्रदान करें।”

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