हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने 127 अधिकारियों की सेवा की पुष्टि की, 14 वर्षों से चल रहा संघर्ष हुआ समाप्त
रांची, संवाददाता। झारखंड की महिला प्रसार पदाधिकारियों के लिए मंगलवार का दिन एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ। ग्रामीण विकास विभाग में कार्यरत 127 महिला प्रसार पदाधिकारियों की सेवाओं को राज्य सरकार ने स्थायी रूप से पुष्टि (कंफर्म) कर दिया है। यह फैसला झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में लिया गया है, जिससे इन कर्मियों के लंबे समय से जारी असमंजस और संघर्ष का अंत हो गया है।
मामले की पृष्ठभूमि
इन महिला पदाधिकारियों की नियुक्ति वर्ष 2008-09 के दौरान ग्रामीण विकास विभाग के विभिन्न जिलों में की गई थी। ये अधिकारी राज्य सरकार की योजनाओं — विशेष रूप से महिला सशक्तिकरण, स्वच्छता, स्व-रोजगार और पंचायत स्तर पर विकास योजनाओं के प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं।
लेकिन वर्ष 2011 और 2018 में सरकार ने दो अलग-अलग आदेश पारित कर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं। इस निर्णय के खिलाफ महिला प्रसार पदाधिकारियों ने झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी सेवाएं बिना किसी विभागीय जांच या उचित प्रक्रिया के समाप्त की गई हैं, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने सरकार के दोनों आदेशों को रद्द (क्वैश) कर दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “इन महिला प्रसार पदाधिकारियों की सेवा समाप्ति मनमानी और असंवैधानिक थी,” और सरकार को निर्देश दिया कि सभी को उनके पद पर पुनर्स्थापित कर सेवा की पुष्टि की जाए।
इसके बाद राज्य सरकार ने न्यायालय के आदेश के अनुपालन में सभी 127 महिला प्रसार पदाधिकारियों की सेवा को स्थायी (कंफर्म) कर दिया।
महिला कर्मचारियों में खुशी की लहर
सरकार के इस निर्णय से पूरे राज्य में महिला प्रसार पदाधिकारियों में खुशी की लहर दौड़ गई है। कई महिलाएं जो वर्षों से अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता में थीं, अब राहत की सांस ले रही हैं।
रांची, लोहरदगा, गुमला, पलामू, चतरा, दुमका, देवघर, और साहेबगंज सहित सभी जिलों में कार्यरत महिला पदाधिकारियों ने इस फैसले को “न्याय की जीत और महिला सशक्तिकरण की मिसाल” बताया।
अधिवक्ता मयंक कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका
इस प्रकरण में महिला प्रसार पदाधिकारियों की ओर से अधिवक्ता मयंक कुमार ने प्रभावशाली पैरवी की। उन्होंने न्यायालय में तर्क दिया कि इन अधिकारियों की नियुक्ति विधिसम्मत थी और इनके सेवा समाप्ति आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ थे।
हाईकोर्ट ने उनके तर्कों को स्वीकार करते हुए महिला प्रसार पदाधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया।
“यह फैसला उन सभी महिला कर्मियों के आत्मसम्मान की जीत है जिन्होंने वर्षों तक बिना हार माने न्याय की लड़ाई लड़ी। सरकार को अब इनके अनुभव और योगदान को सम्मान देना चाहिए।”
— अधिवक्ता मयंक कुमार
सरकार का आदेश जारी, विभागों को निर्देश
ग्रामीण विकास विभाग ने आदेश जारी करते हुए सभी जिलों के उपायुक्तों और जिला कार्यक्रम समन्वयकों को निर्देश दिया है कि महिला प्रसार पदाधिकारियों की सेवा की नियमित पुष्टि के बाद उनका लाभ, वेतनमान और पदस्थापन अद्यतन किया जाए।
लंबे संघर्ष का सुखद अंत
करीब 14 वर्षों से न्याय और स्थायित्व की लड़ाई लड़ रहीं महिला कर्मियों के लिए यह फैसला न सिर्फ रोजगार की सुरक्षा लाया है, बल्कि महिलाओं के सरकारी सेवा क्षेत्र में योगदान को भी नई पहचान दी है।
एक महिला अधिकारी ने भावुक होकर कहा —
“हमें वर्षों तक अस्थायी मानकर काम कराया गया, लेकिन हमने उम्मीद नहीं छोड़ी। आज हाईकोर्ट और सरकार दोनों ने हमें हमारा अधिकार दिलाया है।”
मुख्य बिंदु एक नजर में :
- झारखंड सरकार ने 127 महिला प्रसार पदाधिकारियों की सेवाओं की पुष्टि की।
- वर्ष 2011 और 2018 में सेवा समाप्ति आदेशों को हाईकोर्ट ने किया रद्द।
- अधिवक्ता मयंक कुमार की पैरवी में महिला कर्मियों को मिली कानूनी जीत।
- ग्रामीण विकास विभाग ने सभी जिलों को आदेश जारी किया।
- महिला पदाधिकारियों में खुशी और न्यायपालिका के प्रति आभार की भावना।
Reviewed by PSA Live News
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2:11:00 pm
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