आईआईटी-आईएसएम धनबाद के शताब्दी वर्ष पर विशेष डाक टिकट जारी, विद्यार्थियों को देश के भविष्य का मार्गदर्शक बताया
धनबाद। झारखंड की धरती बुधवार को एक ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनी, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी दो दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन आईआईटी-आईएसएम धनबाद के 45वें दीक्षांत समारोह में शिरकत की। यह अवसर इसलिए भी विशेष रहा क्योंकि संस्थान अपनी स्थापना के 100वें गौरवशाली वर्ष में प्रवेश कर चुका है। राष्ट्रपति ने इस यादगार अवसर पर एक विशेष डाक टिकट जारी कर संस्थान की शताब्दी यात्रा को अमर बना दिया।
शताब्दी का गौरव और भावनाओं का संगम
धनबाद के आईआईटी-आईएसएम का इतिहास केवल एक संस्थान की कहानी नहीं, बल्कि झारखंड की शैक्षिक यात्रा का प्रतीक है। खनन इंजीनियरिंग के क्षेत्र से 1926 में अपनी शुरुआत करने वाला यह संस्थान आज विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और शोध का वैश्विक केंद्र बन चुका है। राष्ट्रपति के हाथों शताब्दी वर्ष पर स्मारक डाक टिकट का अनावरण होना न केवल संस्थान, बल्कि पूरे राज्य के लिए गर्व की बात है।
यह डाक टिकट संस्थान की 100 वर्ष की यात्रा का प्रमाण है—संघर्ष, परिश्रम और निरंतर उत्कृष्टता की दास्तान। समारोह में मौजूद विद्यार्थियों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों की आँखों में गर्व और भावुकता की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी।
विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रपति का संदेश: ‘आप ही देश का भविष्य हैं’
दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संबोधन विद्यार्थियों के लिए ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत रहा। उन्होंने कहा:
“आपके ज्ञान और नवाचार से न केवल उद्योगों को नई दिशा मिलेगी, बल्कि देश के विकास की गति भी तेज होगी। तकनीकी शिक्षा के बल पर झारखंड और पूरा हिंदुस्तान आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकता है।”
उन्होंने विशेष रूप से शोध और नवाचार पर ज़ोर देते हुए कहा कि आने वाले समय में ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल तकनीक और खनन के आधुनिक तरीकों में आईआईटी-आईएसएम का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।
संस्थान की उपलब्धियाँ और भविष्य की राह
आईआईटी-आईएसएम धनबाद ने पिछले 100 वर्षों में अनगिनत इंजीनियर, वैज्ञानिक और शोधकर्ता तैयार किए हैं, जिन्होंने न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहराया है।
इस दीक्षांत समारोह में 2000 से अधिक विद्यार्थियों को स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्रियाँ प्रदान की गईं। कई छात्रों को स्वर्ण और रजत पदक से भी सम्मानित किया गया।
संस्थान ने इस अवसर पर अपनी आगामी योजनाओं की झलक भी प्रस्तुत की—जिसमें खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में स्वदेशी तकनीकों का विकास, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर शोध, और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना शामिल है।
झारखंड की शिक्षा और विकास पर राष्ट्रपति की यात्रा का प्रभाव
राष्ट्रपति का यह दौरा महज़ एक औपचारिकता नहीं था। इस यात्रा ने झारखंड को एक नई पहचान दी है।
- यह संदेश गया कि राज्य केवल खनिज संपदा के लिए ही नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा और नवाचार के लिए भी जाना जाएगा।
- राष्ट्रपति ने जिस तरह तकनीकी शिक्षा को विकास का आधार बताया, उससे सरकार और प्रशासन को भी नई नीतियाँ बनाने की दिशा मिलेगी।
- युवाओं को आत्मविश्वास मिला कि वे विश्वस्तरीय मंचों पर अपनी पहचान बना सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा आने वाले वर्षों में राज्य के शैक्षिक ढांचे को और मज़बूत करेगा तथा यहाँ के प्रतिभाशाली छात्रों को बड़े अवसर उपलब्ध कराएगा।
सांस्कृतिक पहचान और गर्व का उत्सव
समारोह केवल डिग्रियाँ बाँटने का मंच नहीं था, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा की झलक भी प्रस्तुत करता रहा। विद्यार्थियों ने पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से राज्य की सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि को दर्शाया। राष्ट्रपति ने भी इस पहल की सराहना की और कहा कि शिक्षा और संस्कृति का संगम ही किसी समाज को संपूर्णता प्रदान करता है।
जनता की उम्मीदें और चुनौतियाँ
स्थानीय नागरिकों और विद्यार्थियों ने राष्ट्रपति की इस यात्रा को ऐतिहासिक करार दिया। उनका कहना है कि इससे झारखंड के शैक्षिक परिदृश्य में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ है।
हालाँकि चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं—ग्रामीण इलाकों में अब भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है, और तकनीकी संस्थानों की पहुँच सीमित है। विशेषज्ञों का मानना है कि आईआईटी-आईएसएम जैसे संस्थान यदि स्थानीय युवाओं को भी अधिक अवसर उपलब्ध कराएँ, तो झारखंड में प्रतिभा पलायन की समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है।
एक नए युग की शुरुआत
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की धनबाद यात्रा केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि झारखंड की शिक्षा और विकास यात्रा का नया अध्याय है। आईआईटी-आईएसएम धनबाद का शताब्दी वर्ष इस बात का प्रमाण है कि झारखंड में शिक्षा की ज्योति और उज्जवल भविष्य की उम्मीद लगातार प्रबल हो रही है।
आज जब विद्यार्थी डिग्रियाँ लेकर निकले, तो उनके साथ न केवल ज्ञान और कौशल था, बल्कि राष्ट्रपति के संदेश का आत्मविश्वास और झारखंड की मिट्टी का गर्व भी।

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