प्रेम, सेवा, दया, समरसता, स्वावलंबन और समाजोत्थान के अग्रदूत: संजय सर्राफ
रांची। झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि हिंदुस्तान संतों, महापुरुषों और महान शासकों की भूमि रही है। यहाँ जन्मे विभूतियों ने अपने विचारों, आदर्शों और कर्मों से समाज को नई दिशा प्रदान की। उन्हीं में से एक थे महाराजा अग्रसेन — एक ऐसे युगपुरुष जिन्होंने समाजवाद, सहयोग और समानता की अनोखी मिसाल कायम की।
इस वर्ष महाराजा अग्रसेन जयंती 22 सितंबर, सोमवार को धूमधाम से मनाई जाएगी। यह तिथि हर वर्ष शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, यानी आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को आती है।
जन्म और वंश
इतिहासकार मानते हैं कि महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंत और कलियुग के प्रारंभ में हुआ था। वे सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ सेन के पुत्र थे। युवावस्था से ही उन्होंने राजकाज में गहरी रुचि ली और न्यायप्रिय, दयालु तथा दूरदर्शी शासक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
उनकी राजधानी अग्रोहा नगरी थी, जो वर्तमान में हरियाणा राज्य के हिसार जिले में स्थित है।
शासन और आदर्श
महाराजा अग्रसेन ने "अहिंसा परमो धर्म:" के सिद्धांत पर चलते हुए कभी युद्ध का मार्ग नहीं चुना। वे शांति, सौहार्द और समाज के कल्याण से राज्य चलाने के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने अग्रवाल वंश की स्थापना की, जो आज व्यापार, शिक्षा, समाजसेवा और उद्योग में अग्रणी है।
महाराजा अग्रसेन की पत्नी का नाम महारानी माधवी था। उन्होंने कुल 18 गोत्रों की रचना की, जिनमें से प्रत्येक गोत्र एक विशेष गुण, विचारधारा और कर्मक्षेत्र को दर्शाता है। ये गोत्र आज भी अग्रवाल समाज की पहचान बने हुए हैं — ऐरन, बंसल, बिंदल, भंदल, धारण, गर्ग, गोयल, गोयनका, जिंदल, कंसल, कुच्छल, मधुकुल, मंगल, मित्तल, नागल, सिंघल, तायल और तिंगल।
समाजवादी व्यवस्था की नींव
महाराजा अग्रसेन ने अपने शासनकाल में एक अद्वितीय व्यवस्था लागू की थी। जब कोई नया परिवार अग्रोहा नगरी में बसता, तो प्रत्येक परिवार उसे एक ईंट और एक रुपया देता था।
ईंट से घर बनाने में सहायता मिलती और रुपया आर्थिक सहयोग का प्रतीक होता। यह व्यवस्था समाजवाद, सहयोग और आत्मनिर्भरता की अद्भुत मिसाल है। उनके शासन में कोई गरीब, भूखा या असहाय नहीं था।
साहित्य और ऐतिहासिक संदर्भ
महाराजा अग्रसेन के जीवन और आदर्शों पर अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं। हिंदी साहित्य के जनक कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र, जो स्वयं अग्रवाल समुदाय से थे, ने 1871 में "अग्रवालों की उत्पत्ति" नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें महाराजा अग्रसेन के जीवन का विस्तृत उल्लेख है।
आज की प्रासंगिकता
संजय सर्राफ ने कहा कि महाराजा अग्रसेन केवल एक शासक नहीं थे, बल्कि एक विचारधारा थे। उनके जीवन के तीन मूल आदर्श — लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समानता और सामाजिक समरसता — आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जब दुनिया असमानता, जातिगत भेदभाव और आर्थिक विषमता से जूझ रही है।
उन्होंने कहा कि अग्रसेन जयंती केवल स्मरण का अवसर नहीं है, बल्कि यह समाजोत्थान, सेवा और समरसता की प्रेरणा लेने का दिन है।
सरकारी मान्यता और सम्मान
भारत सरकार ने महाराजा अग्रसेन की स्मृति में डाक टिकट जारी किया है। कई राज्य सरकारें उनकी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित करती हैं। उनके नाम पर विश्वविद्यालय, अस्पताल, सड़कें और संस्थान स्थापित किए गए हैं।
प्रेरणा का स्रोत
संजय सर्राफ ने कहा —"महाराजा अग्रसेन प्रेम, सेवा, दया, स्वावलंबन और समाजोत्थान के अग्रदूत थे। उनकी जयंती पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके आदर्शों को आत्मसात करें और ऐसा समाज बनाएं जिसमें कोई भूखा, असहाय या उपेक्षित न हो।"

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