✍ संवाददाता सतीश कुमार की विशेष रिपोर्ट –
पटना। राजधानी पटना में खाद्य सुरक्षा प्रशासन की ताबड़तोड़ कार्रवाई ने उन लोगों की आंखें खोल दी हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में सब्जी के रूप में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले आलू पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं। मीठापुर और मीनाबाजार मंडी में नकली आलू का भंडाफोड़ हुआ है। पुराने आलू को गेरुआ मिट्टी और खतरनाक रसायनों से चमकदार बनाकर ‘नया आलू’ के नाम पर बेचा जा रहा था।
खाद्य सुरक्षा अधिकारी अजय कुमार के नेतृत्व में हुई छापेमारी में करीब दो ट्रक आलू जब्त किए गए और इन्हें जांच के लिए लैब भेजा गया है। इस कार्रवाई ने साफ कर दिया है कि अब सब्जी बाजार में भी मिलावटखोरों ने गहरी पैठ बना ली है।
कैसे बन रहा था नकली आलू?
प्रारंभिक जांच में सामने आया कि छत्तीसगढ़ से प्रतिदिन सुबह छह बजे ट्रकों द्वारा आलू लाए जाते थे। इन आलुओं को गेरुआ मिट्टी और रसायनों से इस तरह चमकाया जाता कि वे बिलकुल ताजे आलू जैसे दिखने लगते। सुबह नौ बजे तक इन्हें मंडी के स्थानीय व्यापारी खरीद लेते और फिर मोहल्लों व बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचते।
जहां असली आलू 35–40 रुपये किलो बिक रहा था, वहीं ये 20–25 रुपये किलो में मंगाकर 70–75 रुपये किलो तक में धड़ल्ले से बेचा जा रहा था।
पहचान कैसे करें नकली आलू?
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने उपभोक्ताओं को सचेत करते हुए बताया कि नकली आलू को पहचानना मुश्किल नहीं है—
- इनसे तेज रासायनिक गंध आती है।
- सतह जरूरत से ज्यादा चमकदार दिखती है।
- काटने पर अंदर और बाहर का रंग मेल नहीं खाता।
- पानी में डालने पर ये तैर जाते हैं, जबकि असली आलू डूब जाते हैं।
- ये आलू सामान्य से बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं।
स्वास्थ्य पर खतरे की घंटी
विशेषज्ञों के अनुसार इन आलुओं पर इस्तेमाल होने वाले रसायन बेहद हानिकारक हैं। इनके सेवन से—
- लीवर और किडनी को नुकसान पहुंच सकता है।
- लंबे समय तक उपयोग से पाचन तंत्र कमजोर हो सकता है।
- कब्ज, पेट में सूजन और भूख न लगना जैसी क्रोनिक समस्याएं हो सकती हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि रसायनयुक्त आलू खाने का असर बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ सकता है।
छापेमारी के दौरान अफरातफरी
जैसे ही छापेमारी की भनक लगी, करीब आधा दर्जन व्यापारी मौके से भाग खड़े हुए। प्रशासन अब उनकी पहचान कर कार्रवाई में जुटा है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह संगठित गिरोह है, जो विभिन्न राज्यों से आलू मंगाकर उसे नकली रूप में बेचकर करोड़ों का मुनाफा कमा रहा है।
प्रशासनिक चुनौती और मंडी की लापरवाही
यह पहला मौका नहीं है जब मंडियों में नकली और रसायनयुक्त खाद्य पदार्थ पकड़े गए हों। सब्जी, फल और अनाज तक में मिलावट की खबरें लगातार आती रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि स्थानीय मंडी प्रबंधन और नगर प्रशासन की निगरानी कमजोर क्यों है?
विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य सुरक्षा कानून के बावजूद नियमित निरीक्षण की कमी और भ्रष्ट तंत्र के कारण इस तरह का कारोबार पनपता है।
उपभोक्ताओं को कैसे सतर्क रहें?
- आलू खरीदते समय गंध और सतह पर विशेष ध्यान दें।
- चमकदार और अजीब गंध वाले आलू से बचें।
- घर पर जांच के लिए आलू को पानी में डालकर देखें—डूबा तो असली, तैरा तो नकली।
- ज्यादा जल्दी खराब होने वाले आलू पर शक करें।
- बच्चों और बुजुर्गों को संदिग्ध आलू खिलाने से बचें।
जनता की नाराज़गी और सवाल
लोगों का कहना है कि जब रोजमर्रा की रसोई में इस्तेमाल होने वाली सब्जी ही सुरक्षित नहीं, तो आम उपभोक्ता का भरोसा किस पर रहेगा? सवाल उठ रहे हैं कि प्रशासन छापेमारी के बाद कितनी दूर तक जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करेगा और उपभोक्ताओं को असली-नकली से बचाने के लिए दीर्घकालिक व्यवस्था क्या होगी।
निष्कर्ष
पटना का यह मामला सिर्फ एक शहर तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश की उस समस्या की ओर इशारा करता है, जहां मुनाफाखोरी के लिए सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है। अब जरूरत है कि खाद्य सुरक्षा प्रशासन नियमित जांच को और सख्त करे, मंडियों की निगरानी मजबूत हो और उपभोक्ता भी सतर्क रहें। तभी इस तरह के “जहरनुमा कारोबार” पर पूरी तरह रोक लगाई जा सकेगी।
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Reviewed by PSA Live News
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12:03:00 pm
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