नवरात्रि का हर दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की उपासना को समर्पित है। इन नौ दिनों में चौथे दिन मां के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से अत्यंत विशेष माना जाता है, क्योंकि इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थित होता है। यह चक्र प्रेम, करुणा और दिव्यता का प्रतीक है। इसलिए मां कूष्माण्डा की उपासना भक्तों को निश्छल भाव से करनी चाहिए।
क्यों कहलाती हैं कूष्माण्डा?
‘कूष्माण्डा’ नाम की व्युत्पत्ति ‘कूष्मा’ अर्थात कद्दू और ‘अण्ड’ अर्थात ब्रह्माण्ड से मानी जाती है। कथा है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और चारों ओर केवल घोर अंधकार व्याप्त था, तब मां ने अपनी मंद, कोमल और अलौकिक मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की। अपने इसी दिव्य कार्य के कारण वे कूष्माण्डा नाम से जानी जाती हैं। इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है।
मां कूष्माण्डा का स्वरूप
मां कूष्माण्डा अष्टभुजा धारी हैं। इनके आठ हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृतकलश, गदा, चक्र और माला सुशोभित हैं, जबकि एक हाथ में सिद्धि और निधि प्रदान करने वाला वरद मुद्रा है। वे सिंह पर आरूढ़ रहती हैं, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनका तेज और आभा सूर्य के समान मानी जाती है, इसलिए इन्हें आदित्य स्वरूपिणी भी कहा गया है।
पूजा-विधि और अनुष्ठान
नवरात्रि के चौथे दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके मां कूष्माण्डा का ध्यान करना चाहिए। पूजा स्थल पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर गंध, अक्षत, पुष्प और दीप अर्पित करें। मां को कद्दू विशेष प्रिय माना जाता है, इसलिए इस दिन कद्दू का भोग अर्पित करना विशेष फलदायी होता है। भक्तजन मां को सफेद पुष्प, मालपुए और मिश्री भी अर्पित करते हैं।
पूजन के समय निम्न मंत्र का जप करने से मां प्रसन्न होकर भक्तों को आयु, आरोग्य और समृद्धि प्रदान करती हैं—
"ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः"
आध्यात्मिक और लोक-मान्यता
मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्त को रोग-शोक, भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। यह दिन विशेष रूप से उन साधकों के लिए कल्याणकारी माना जाता है जो आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति की तलाश में हों। लोक मान्यता है कि सच्चे हृदय से मां की पूजा करने पर साधक को जीवन में सुख, समृद्धि और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि मां कूष्माण्डा सूर्य मण्डल में निवास करती हैं और वहीं से ब्रह्माण्ड को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करती हैं। यही कारण है कि उनके भक्तों को तेजस्विता, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास का आशीर्वाद मिलता है।
नवरात्रि का चौथा दिन भक्तों के लिए केवल पूजा का ही अवसर नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को पवित्र और ऊर्जा से भरने का अद्वितीय क्षण है। मां कूष्माण्डा की उपासना हमें यह संदेश देती है कि मुस्कान और सकारात्मक ऊर्जा से ही संसार की सृष्टि और जीवन का विस्तार संभव है।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इस लेख में आधुनिक संदर्भ (जैसे स्वास्थ्य, ऊर्जा, जीवनशैली से जुड़ी प्रेरणा) भी जोड़ दूँ ताकि यह और समकालीन लगे और पाठकों को व्यक्तिगत स्तर पर जोड़ सके?
Reviewed by PSA Live News
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8:36:00 am
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