हरियाणा /हिसार (राजेश सलूजा) । नवरात्र में हम मां की आराधना करते है, मां शब्द सभी मानवीय रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण तथा उच्चतम माना जाता है क्योंकि हर जीव उसकी कोख में अपना स्वरूप लेते है, उनकी गोद में पलते है तथा उनके आंचल में संस्कारित होते है। जीवन में किसी भी जीव की पहली गुरु मां ही होती है, मां के रूप का विस्तार इतना बड़ा होता है कि सभी उसके आंचल में समा सकते है। एक मां को कोई भी मां से संबोधित कर सकते है, किसी भी ग्रहणी को कोई अनजान भी मां के नाम से पुकार सकते है, उनकी ममता, संवेदना, सौम्यता, विनम्रता सभी को अपना समझने की विशालता दिखाती है। जब हमारे यहां मां से मम्मी शब्द का चलन बढ़ा है, इससे मां शब्द का अर्थ संकुचित हो गया, इसके बाद कुछ पश्चिमी सभ्यता से अति प्रभावित लोगों द्वारा मां को मोम कहना शुरू किया एवं मांओं द्वारा इसे स्वीकृति दी, तो इस विशाल शब्द का अर्थ बेहद संकीर्ण होने लगा। इसमें मां के इन्हेरिटेड गुण भी कम होने लगे। जहां एक मां को एक इंसान को गढ़ने का कार्य दिया था, उन्हें संस्कारित करने की ईश्वरीय जिम्मेदारी थी वो धीरे धीरे कम होने लगी। मम्मियों या मोम अपने गर्भावस्था के दौरान ऐसे ऐसे टेलीविजन सीरियल देखने लगी जिससे उनके गर्भ में पल रहे बच्चों के निर्माण पर नेगेटिव असर पड़ने लगा, उनके खानपान ऐसे फास्ट फूड हो गए जो गर्भस्थ शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते है। ऐसे धीरे धीरे हमारे मानवीय गुणों में ह्रास होने लगा। मां को मां बने रहना बेहद कठिन कार्य है, यहां इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि एक पिता को भी पिता की बजाय डेड बनने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मातापिता ही बच्चों में संस्कार दे सकते है। आज के समाचार पत्र को पढ़े तो हम जान पाते है कि हमारी नई पीढ़ी में धैर्य, प्रश्न करने, अपने भीतर की जिज्ञासा को शांत करने और सहन शक्ति की बड़ी कमी है, जिसके कारण एक बच्चा नीट जैसी प्रवेश परीक्षा में 99.99 परसेंटाइल लाने के बाद एक अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के बावजूद भी इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि उसे वो सब करना ही नहीं था जो उनके मोम डैड कराना चाहते है। एक बच्चा इस लिए ऊंची इमारत से कूद कर अपनी जीवन लीला खत्म कर लेता है क्योंकि उसके दसवीं की परीक्षा में कम अंक आए थे। क्या ये उचित कारण हो सकते है कि एक बच्चा अपना जीवन खत्म कर ले, हमारे समाज में धीरे धीरे ये प्रवृति बढ़ती जा रही है, इसका कारण केवल एक है कि हम अपने बच्चों के व्यक्तित्व को कमजोर कर रहे है, उनकी सोच को संकुचित कर रहे है। उनमें जो मानवीय गुण विकसित होने चाहिए थे, उनमें कमी आ गई है। इसका कारण एक ही दिखता है कि मातापिता, मम्मी डैडी बनकर मातापिता के कर्तव्य नहीं निभा पा रहे है। बच्चों के जन्म के बाद भी आजकल के मातापिता वैसा व्यवहार नहीं करना चाहते है, खुद को बच्चे ही समझते है, अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते है। इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है कि बच्चें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए शादी ही नहीं करना चाहते है। आजकल की मम्मियां अपने छोटे छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन इसलिए पकड़ा देती है कि वो उन्हें फ्री रहने दें, उनके कार्यों में रुकावट ना डाले, उन्हें सीरियल देखने में रुकावट ना डाले, वो मोबाइल फोन देखते देखते भोजन कर लें। यहां विचार करने योग्य बाते ये है कि एक मां का व्यक्तित्व कितना विशाल होना चाहिए, उसे पढ़ने, गढ़ने, तथा व्यवहार में उतारने की जरूरत है, जिससे बच्चें उन्हें देखकर ही खुद को सशक्त बना सकें। आजकल बच्चे अपने मम्मी पापा के बीच होते झगड़े को देखते है, उनके बीच उपयोग होने वाले शब्दों को सुनते है, उनके अधीरतापूर्ण व्यवहार को देखते है, उनके खाने पीने के खाद्य पदार्थों को देखते है, उनके पहने हुए वस्त्रों को देखते है तो फिर वैसा ही सीखते है। जब हम मां की बात करते है तो उनके गुणों के विस्तार को देखने की बात होती है, उनकी सहनशीलता, उनके स्नेह, उनकी धैर्य शक्ति, उनकी सीखने सिखलाने की शक्ति, दूसरों के साथ चीजों को साझा करने की वृति, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता, सत्य बोलने की आदत, समाज में अपना योगदान देने की वृति, अपने बच्चों को निर्भीक बनाने की इच्छा शक्ति, उनमें व्रत संकल्प लेने की शक्ति को देखते है तो बच्चें भी अपना व्यक्तित्व का निर्माण वैसा ही करते है। जब मां, खुद को मम्मी के रूप में गढ़ लेती हैं तो उसके विचारों की विशालता खुद ब खुद संकीर्ण होती चली जाती है, केवल अपने ही बच्चों तक सोचना विचारना शुरू हो जाता है, उनके मन वा बुद्धि को इतना छोटा कर दिया जाता है कि वो समाज तथा राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत को तो भूल ही जाते है। मां शब्द तो ऐसा है जो सबके लिए है, उसका आंचल तो सबके लिए विशाल है, उनकी ममता तो एक ईश्वरीय गुण है जो सभी के लिए है चाहे कोई बच्चा हो, चाहे बड़ा हो, चाहे अमीर हो, चाहे गरीब हो, सभी के लिए एक जैसा स्नेह होता है,उससे तो बच्चें ही नहीं बल्कि उनके देवर भी मां की तरह सीखते है। जब एक मां, माता का रूप लेती है तो उसका हृदय और विशाल हो जाता है, उनके भीतर के मानवीय गुण और अधिक सुंदर हो जाते है, फिर मां माता बनकर पूरे संसार को समेट लेती है,वो सभी का ख्याल रखती है। मां का माता के रूप में आने का अर्थ है कि वो इस श्लोक को चरितार्थ करती है जैसे; या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेन संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: अर्थात मां सभी प्राणियों के लिए शक्ति रूप है इसलिए उन्हें हम नमन करते है। यहां माता के तीन रूपो को विशेष रूप से हम ग्रहण करते है जैसे सरस्वती के रूप में जो विद्या प्रदान करती है वो विद्या की देवी है वहीं तो हमे संस्कार देती है, तर्कशीलता देती है, प्रश्न करना सिखाती है, वो रूप ही तो हमे नैतिक बल से सुसज्जित करता है। लक्ष्मी के रूप में जो धन वैभव की देवी है, वही तो हमे शुभ लाभ का अर्थ समझती है। दुर्गा के रूप में जो शक्ति की देवी है, जो हमे अनैतिकता, अधर्म, अन्याय, पक्षपात, अनीति से लड़ना सिखाती है और अगर तीनों एक रूप में आए तो फिर वो समृद्धि की देवी है, जो हमे हर प्रकार से संपन्न करती है। एक मां भी तो अपने बच्चों को ये तीनों संस्कार प्रदान करती है, एक मां अपने सभी बच्चों, चाहे वो किसी की भी कोख से जन्मे हो, उन्हें विद्या ग्रहण करने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें स्वास्थ्य किए प्रेरित करती है, उन्हें निडर बनाती है, बच्चों को अच्छे राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें सशक्त बनाती है, अभय बनाती है, उन्हें धैर्य से जीना सिखाती है, उनकी सोच को विशाल बनाती है, परमार्थिक बनाने का कार्य करती है। जब हम मां कहते है तो सभी की कल्याणकारी बात करते है, जब हम माता की बात करते है तो विश्व स्वरूप की बात करते है और जब हम मम्मी या मोम की बात करते है तो बहुत ही संकीर्णता की बात पर आकर रखते है जो खुद के जीने का विचार अधिक करती है या केवल अपने बच्चों तक सीमित रहने की बात करती है। अगर बच्चों को किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से बचाना है तो खुद को मां के रूप में स्थापित करके इस धरती मां के सभी बच्चों को सशक्त बनाने के कार्यों में लग जाएं, ताकि हम एक सशक्त वा विकसित भारत का निर्माण कर सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम डार्विन के इवोल्यूशन की जगह डिवाल्यूशन की तरफ अग्रसर होंगे। नैतिक पतन की ओर जाएंगे, हम विशालता से संकीर्णता की ओर जाएंगे। आओ मिलकर हम बहन, बेटी, मां का मान बढ़ाएं और जीवन को समृद्ध बनाएं।
मां को मां बनने की जरूरत है मम्मी नहीं, अगर माता का रूप ले सकें तो और बेहतर होगा
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9:10:00 pm
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