हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष संजय सर्राफ ने कहा है कि हर वर्ष 23 सितंबर को हम भारत के महान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती मनाते हैं। वे केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक चेतना और राष्ट्रभक्ति के प्रखर प्रवक्ता भी थे। उनका साहित्य आज भी युवाओं में ऊर्जा, साहस और देशप्रेम की भावना का संचार करता है। दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। वे एक साधारण कृषक परिवार से थे। बचपन में ही पिता का देहांत हो गया, लेकिन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक किया और इसके बाद वे शिक्षक, पत्रकार और फिर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए।
उनकी कविताओं में ओज, शौर्य और क्रांति की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। दिनकर जी को विशेष रूप से वीर रस के कवि के रूप में जाना जाता है। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में 'संस्कृति के चार अध्याय', 'परशुराम की प्रतीक्षा', 'कुरुक्षेत्र', 'रश्मिरथी', 'उर्वशी' आदि शामिल हैं।रश्मिरथी में कर्ण की पीड़ा और संघर्ष का मार्मिक चित्रण है, तो 'कुरुक्षेत्र' में युद्ध और शांति की गूढ़ दार्शनिकता को दर्शाया गया है। वहीं 'उर्वशी' जैसी रचना में उन्होंने प्रेम और सौंदर्य को उच्च स्तर पर उठाया। दिनकर जी का साहित्य समाज की जटिलताओं को उजागर करता है और न्याय, समानता एवं राष्ट्रहित की बात करता है। दिनकर जी को उनकी साहित्यिक सेवा के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, और राज्यसभा सदस्य जैसे गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए। वर्ष 1972 में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी लेखनी सत्ता से भी टकराने का साहस रखती थी। उन्हें "जनकवि" भी कहा जाता है क्योंकि वे जनता की आवाज़ बनकर उभरे। आज जब देश को पुनः जागरूकता, नैतिकता और राष्ट्रीयता की आवश्यकता है, तब दिनकर जी की कविताएं नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी जयंती पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और उनके अमर साहित्य को स्मरण कर देशभक्ति की ज्योति को प्रज्वलित करते हैं।

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