रांची। झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता एवं हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष संजय सर्राफ ने कहा है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनकी जयंती हर वर्ष 19 नवंबर को बड़े सम्मान एवं गर्व के साथ मनाई जाती है। यह दिवस न केवल उनके जन्म का स्मरण करता है बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में उनकी अमिट भूमिका, साहस, नेतृत्व और देशभक्ति की भावना को भी श्रद्धांजलि देता है। महारानी लक्ष्मीबाई जिनका बचपन का नाम मणिकर्णिका (मनु) था, अल्पायु से ही असाधारण प्रतिभा और शौर्य से परिपूर्ण थीं। तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और युद्धकला में उनकी दक्षता उन्हें सामान्य लड़कियों से अलग पहचान दिलाती थी। बाद में उनका विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ और वे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से विख्यात हुईं। महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत झाँसी पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया, जिसे रानी ने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया। उनका प्रसिद्ध वाक्य-मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी-ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध भारतीय जनमानस के आत्मसम्मान और विद्रोह का प्रतीक बन गया।1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने न केवल झाँसी की रक्षा की बल्कि कई क्षेत्रों में अंग्रेजों से सीधे युद्ध किया। उन्होंने अपनी सेना के साथ अद्भुत साहस और रणनीति का परिचय दिया। रानी का नेतृत्व एक महिला योद्धा के लिए मिसाल था। युद्धभूमि में वे अपने पुत्र दामोदर राव को पीछे बाँधकर दुश्मनों से लड़ती रहीं। ग्वालियर के समीप 18 जून 1858 को लड़ते-लड़ते वे वीरगति को प्राप्त हुईं।रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाने का उद्देश्य सिर्फ उनके शौर्य को याद करना नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को साहस, त्याग, नेतृत्व, आत्मसम्मान और देशभक्ति की प्रेरणा देना है। यह दिवस उन सभी महिलाओं और पुरूषों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है जो अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का साहस रखते हैं।भारत के विद्यालयों, सरकारी संस्थानों, सांस्कृतिक संगठनों और सेना में इस दिन विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं-जैसे कि व्याख्यान, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, शौर्य दिवस समारोह, कविताएँ, निबंध प्रतियोगिताएँ और उनके जीवन पर आधारित नाट्य मंचन। आज भी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास की सबसे अग्रणी और प्रेरणादायी वीरांगनाओं में गिनी जाती हैं। उनके अदम्य साहस और देशप्रेम की गाथा हर भारतीय के हृदय में अमर है।रानी लक्ष्मीबाई की जयंती भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अध्याय को याद करने और स्वतंत्रता की महत्ता को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
रानी लक्ष्मीबाई की अदम्य साहस और देशप्रेम की गाथा हर भारतीय के हृदय में अमर है: संजय सर्राफ
Reviewed by PSA Live News
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