गोवा में जनजाति संस्कृति की रक्षा को लेकर गरजी जनजातियाँ, डीलिस्टिंग की माँग को लेकर पणजी में विशाल महारैली
पणजी (गोवा)। गोवा की राजधानी पणजी आज जनजातीय अस्मिता और सांस्कृतिक अधिकारों की बुलंद आवाज़ का गवाह बनी, जहाँ जनजाति सुरक्षा मंच गोवा प्रदेश द्वारा एक विशाल "जनजातीय संस्कृति संवर्धन डीलिस्टिंग महारैली" का आयोजन किया गया। इस ऐतिहासिक रैली में गोवा के मूल आदिवासी जनजातियों ने भारी वर्षा के बावजूद भारी संख्या में भाग लिया और अपने पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित स्वर में अपनी बात रखी।
रैली का मुख्य उद्देश्य उन लोगों को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची से हटाने की माँग को लेकर था, जिन्होंने अपनी पारंपरिक आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाज और देवी-देवताओं को त्यागकर इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है, लेकिन अब भी जनजाति के आरक्षण व अन्य संवैधानिक लाभों का लाभ उठा रहे हैं। जनजाति सुरक्षा मंच का स्पष्ट कहना है कि धर्मांतरण के बाद भी इन व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति की सुविधाएँ मिलना, मूल आदिवासी समाज के साथ अन्याय है और यह सामाजिक व सांस्कृतिक असंतुलन को जन्म देता है।
महारैली को संबोधित करते हुए पूर्व न्यायाधीश और जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सदस्य प्रकाश उईके ने कहा,
"हम धर्मांतरण के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन धर्मांतरण के बाद भी जनजातीय पहचान और उसके लाभों को बनाए रखना संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अनुचित है।"
वहीं मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा,
"जनजातीय समाज की सांस्कृतिक पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए डीलिस्टिंग अत्यंत आवश्यक है। जिन लोगों ने स्वेच्छा से धर्म बदला है, वे अब हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से अलग हो चुके हैं, अतः उन्हें ST सूची से हटाना चाहिए।"
रैली में गोवा के सैकड़ों गांवों और आदिवासी समुदायों से आए पुरुषों, महिलाओं, युवाओं और बुज़ुर्गों ने पारंपरिक वस्त्रों और सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ हिस्सा लिया। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि, नृत्य और नारों के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि जनजातीय समाज अब अपने अधिकारों की रक्षा को लेकर पूरी तरह जागरूक और संगठित है।
जनजाति सुरक्षा मंच ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और जनजातीय मामलों के मंत्रालय को ज्ञापन भेजकर डीलिस्टिंग की माँग को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का भी अनुरोध किया है। मंच का दावा है कि अगर यह मांग नहीं मानी गई, तो देशभर के आदिवासी समुदायों में व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा।
यह रैली केवल गोवा में नहीं, बल्कि पूरे देश में आदिवासी अस्मिता और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के आंदोलन का प्रतीक बनती जा रही है।
(PSA Live News / राँची दस्तक – विशेष रिपोर्ट)

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