रांची। झारखंड न्यायिक सेवा से जुड़े दो वरिष्ठ अधिकारियों को हाईकोर्ट की अनुशंसा पर राज्य सरकार ने अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है। जिन अधिकारियों को यह कार्रवाई झेलनी पड़ी है, उनमें लक्ष्मण प्रसाद और तौफीक अहमद के नाम शामिल हैं। राज्य सरकार ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। साथ ही नियमों के तहत दोनों अधिकारियों को तीन महीने का वेतन भी प्रदान किया गया है।
कौन कहां पदस्थापित थे?
- लक्ष्मण प्रसाद – चाइबासा में जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह विशेष न्यायाधीश (ACB)।
- तौफीक अहमद – राज्य सरकार के विधि विभाग में अवर सचिव सह विधि परामर्शी।
दोनों अधिकारी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे, जिसकी वजह से उनके कार्यों पर भी असर पड़ रहा था।
प्रोन्नति और विवाद की पृष्ठभूमि
सूत्रों के अनुसार, कुछ माह पूर्व ही झारखंड हाईकोर्ट ने तौफीक अहमद को जिला जज के पद पर प्रोन्नति देने की अनुशंसा की थी। यह अनुशंसा उस समय की गई थी, जब न्यायिक सेवा अधिकारियों की प्रोन्नति प्रक्रिया को लेकर विवाद खड़ा हो गया था।
दरअसल, यह मामला “धर्मेंद्र सिंह बनाम झारखंड हाईकोर्ट” शीर्षक से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था। आरोप था कि प्रोन्नति के दौरान वरिष्ठता के नियमों का उल्लंघन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट को कुछ अधिकारियों की प्रोन्नति और कुछ की डिमोशन (पदावनति) की अनुशंसा करने को कहा था।
- इस प्रक्रिया में तौफीक अहमद समेत कई अधिकारियों को जिला जज के पद पर प्रोन्नति मिलने वाली थी।
- लेकिन जिन अधिकारियों को पदावनति दी जानी थी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
- सुप्रीम कोर्ट ने उनके आवेदन पर अंतरिम आदेश देते हुए हाईकोर्ट की अनुशंसा पर रोक लगा दी।
इस रोक की वजह से तौफीक अहमद की जिला जज पद पर प्रोन्नति की अधिसूचना जारी नहीं हो सकी।
अनिवार्य सेवानिवृत्ति क्यों?
जानकारी के अनुसार, दोनों अधिकारी – लक्ष्मण प्रसाद और तौफीक अहमद – लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। कार्यकुशलता और प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह माना गया कि वे अपनी सेवाओं का निर्वहन सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं।
इसी आधार पर हाईकोर्ट ने अनुशंसा की और राज्य सरकार ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश जारी कर दिया।
न्यायिक सेवा में नई हलचल
इस निर्णय ने झारखंड की न्यायिक सेवा में नई हलचल पैदा कर दी है।
- एक ओर इसे प्रशासनिक आवश्यकताओं और सेवा अनुशासन की मजबूरी बताया जा रहा है,
- वहीं दूसरी ओर न्यायिक गलियारों में चर्चा है कि प्रोन्नति विवाद और सुप्रीम कोर्ट की रोक ने भी इन घटनाक्रमों को प्रभावित किया।
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