लोहरदगा। लोहरदगा जिला परिषद की राजनीति इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामे से गुजर रही है। पिछले कई दिनों से अध्यक्ष पद को लेकर चल रहा विवाद अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुँच गया है। जिला परिषद अध्यक्ष रीना कुमारी के खिलाफ विपक्षी सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया है, जिस पर 24 सितंबर 2025 (बुधवार) को जिला परिषद भवन में चर्चा और मतदान प्रस्तावित है।
लेकिन मतदान से ठीक 48 घंटे पूर्व, घटनाक्रम ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया। अध्यक्ष रीना कुमारी ने अचानक अपना लिखित त्यागपत्र लोहरदगा के उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी को सौंप दिया।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या यह कदम मात्र ‘अविश्वास प्रस्ताव से बचने की रणनीति’ है?
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 और नियमावली की शर्तें
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 एवं पंचायत निर्वाचन नियमावली 2001 के प्रावधानों के अनुसार अध्यक्ष पद से त्यागपत्र की प्रक्रिया इस प्रकार है—
- त्यागपत्र की प्रक्रिया – अध्यक्ष अपने स्वलिखित आवेदन द्वारा जिला दंडाधिकारी को संबोधित करते हुए त्यागपत्र दे सकता है।
- 15 दिनों का नियम – यह त्यागपत्र प्राप्ति की तिथि से 15 दिन बाद ही प्रभावी होगा। इस दौरान अध्यक्ष चाहे तो अपना त्यागपत्र वापस भी ले सकता है।
- सदस्यता की शर्त – यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष जिला परिषद का सदस्य नहीं रहता, तो स्वचालित रूप से पद छोड़ना होगा।
त्यागपत्र या सियासी दांव?
इन कानूनी प्रावधानों के आलोक में देखा जाए तो अध्यक्ष रीना कुमारी का यह त्यागपत्र तत्काल प्रभाव से मान्य नहीं है। यह केवल 15 दिन बाद लागू होगा, और उससे पहले इसे वापस भी लिया जा सकता है।
यही वजह है कि राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं यह सुनियोजित रणनीति तो नहीं, ताकि—
- 24 सितंबर को होने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान टल जाए।
- 15 दिन की अवधि के भीतर ही रीना कुमारी अपना त्यागपत्र वापस लेकर पुनः अध्यक्ष पद पर कायम रह सकें।
राजनीतिक हलचल तेज
इस घटनाक्रम के बाद जिला परिषद परिसर में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी गुट इसे “जनादेश और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से भागना” बता रहे हैं, वहीं समर्थक गुट इसे “जनहित में लिया गया निर्णय” कह रहे हैं।
कांग्रेस, भाजपा और झामुमो समर्थक सदस्य आपस में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझे हैं। इधर प्रशासनिक स्तर पर भी यह सवाल गंभीर है कि निर्धारित तिथि को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होगा या फिर त्यागपत्र की तकनीकी अड़चन से प्रक्रिया टल जाएगी।
आगे क्या होगा?
अब सारी निगाहें 24 सितंबर को होने वाली जिला परिषद की बैठक और जिला प्रशासन के निर्णय पर टिकी हुई हैं।
- यदि प्रशासन अविश्वास प्रस्ताव को निरस्त मानता है, तो रीना कुमारी को पद बचाने का मौका मिल जाएगा।
- यदि मतदान कराया जाता है और बहुमत विपक्ष के पक्ष में जाता है, तो अध्यक्ष पद पर नया अध्याय लिखा जाएगा।
कुल मिलाकर, लोहरदगा की जिला परिषद की राजनीति इस समय त्यागपत्र और अविश्वास प्रस्ताव के बीच उलझी हुई है, और जनता यह देखने को बेताब है कि इस खेल का अंत लोकतंत्र की मजबूती में होगा या फिर केवल ‘राजनीतिक नाटक’ साबित होगा।
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