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✍️ विशेष संपादकीय : मोदी सरकार का ऐतिहासिक जीएसटी रिफॉर्म : आत्मनिर्भर भारत से विकसित भारत की ओर

हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक यात्रा में कुछ क्षण ऐसे होते हैं जो इतिहास को नई दिशा देने वाले साबित होते हैं। स्वतंत्रता संग्राम ने हमें राजनीतिक आज़ादी दी, हरित क्रांति ने हमें खाद्यान्न सुरक्षा दी, उदारीकरण ने अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार से जोड़ा, और डिजिटल क्रांति ने नए युग की ओर धकेला। लेकिन कर सुधारों के क्षेत्र में जिस तरह का ऐतिहासिक कदम मोदी सरकार ने उठाया, वह न केवल प्रशासनिक बदलाव है बल्कि एक राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को एक “गुड्स एंड सिंपल टैक्स” के रूप में देखा गया। यह केवल टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव नहीं, बल्कि एक आर्थिक और राजनीतिक क्रांति है, जिसने हिंदुस्तान के संघीय ढांचे को मज़बूत किया, राज्यों और केंद्र को एक साझा राजस्व व्यवस्था से जोड़ा, और कारोबारी माहौल को सरल बनाया।

आज जब मोदी सरकार जीएसटी के सुधारात्मक संस्करण और नए कर ढाँचे को लागू कर रही है, तो यह केवल वित्तीय सुधार नहीं बल्कि “विकसित भारत 2047” की आधारशिला है।

 कर सुधारों का ऐतिहासिक सफ़र (सेल्स टैक्स से जीएसटी तक)

हिंदुस्तान में कर प्रणाली का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। मौर्य काल में “भंडागार” और गुप्त काल में “कर-संग्रह” जैसी व्यवस्थाएँ थीं। अंग्रेज़ों ने आधुनिक कर प्रणाली लागू की, जिसमें आयकर, सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क शामिल थे।

स्वतंत्रता के बाद राज्यों ने अलग-अलग सेल्स टैक्स, एंट्री टैक्स, ऑक्ट्रॉय और वैट (VAT) लगाया। इसका परिणाम यह हुआ कि एक ही वस्तु पर कई बार टैक्स लगते रहे। उदाहरण के लिए, एक साधारण कपड़े पर कपड़ा बनाने वाले से लेकर थोक व्यापारी और फिर खुदरा विक्रेता तक, हर स्तर पर अलग-अलग कर वसूले जाते थे। इससे न केवल उपभोक्ता महँगा माल खरीदता था बल्कि उद्योग और व्यापार की प्रतिस्पर्धा भी घटती थी।

जीएसटी का विचार पहली बार 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने दिया। लेकिन इसकी राजनीतिक सहमति और अमल मोदी सरकार ने 2017 में कराया। अब 2025-26 में इसके सुधारात्मक संस्करण पर काम हो रहा है, ताकि यह और अधिक सरल, पारदर्शी और डिजिटल हो सके।

 जीएसटी सुधार का महत्व और मोदी सरकार का दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा कर सुधार को “जनसहभागिता” और “आर्थिक राष्ट्रवाद” से जोड़ा। उनका मानना है कि टैक्स केवल सरकार की आय नहीं, बल्कि विकास का साधन है।

मोदी सरकार का जीएसटी रिफॉर्म तीन प्रमुख आधारों पर खड़ा है:

  1. सादगी – कर दरों को कम स्लैब में लाना और प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाना।
  2. पारदर्शिता – नकली बिलिंग, टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार पर लगाम।
  3. साझेदारी – केंद्र और राज्य दोनों के राजस्व हितों का संतुलन।

इस दृष्टिकोण के चलते आज जीएसटी कलेक्शन हर महीने औसतन ₹1.8 लाख करोड़ के पार पहुँच चुका है, जो कि एक दशक पहले की तुलना में लगभग दोगुना है।

 आर्थिक प्रभाव

(क) आम जनता

जीएसटी ने “वन नेशन, वन टैक्स” का सपना पूरा किया। उपभोक्ता को अब अलग-अलग राज्यों में कीमतों का बड़ा फर्क नहीं झेलना पड़ता। मसलन, पहले बिहार और महाराष्ट्र में एक ही मोबाइल फोन पर अलग-अलग टैक्स लगते थे, अब पूरे देश में एक दर लागू होती है।

(ख) किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था

कृषि उपकरण, उर्वरक और बीजों को कम कर स्लैब में रखने से किसानों की लागत घटी है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राहत मिली है।

(ग) MSMEs, छोटे व्यापारी और उद्योग

पहले छोटे व्यापारी टैक्स संरचना के जाल में फँसते थे। अब “कंपोजिशन स्कीम” जैसी व्यवस्था ने उन्हें राहत दी। छोटे उद्योग अब बड़े बाजार में बिना जटिल टैक्स के प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।

(घ) बड़े निवेश और स्टार्टअप्स

जीएसटी के बाद विदेशी निवेशकों को भरोसा मिला कि हिंदुस्तान में एक समान कर प्रणाली है। इसी कारण “मेक इन इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” को नई ऊर्जा मिली।

(ङ) सेवा क्षेत्र और डिजिटल इकोनॉमी

डिजिटल पेमेंट और ई-कॉमर्स कंपनियों को एक समान कर व्यवस्था ने सबसे ज़्यादा फायदा पहुँचाया।

सामाजिक प्रभाव

(क) गरीब और मध्यमवर्ग

आवश्यक वस्तुओं पर कम कर लगने से गरीब और मध्यमवर्ग को सीधा लाभ हुआ।

(ख) महिलाएँ

सैनिटरी नैपकिन जैसी आवश्यक वस्तुएँ टैक्स-फ्री हुईं। इससे महिलाओं के स्वास्थ्य और सम्मान पर सकारात्मक असर पड़ा।

(ग) शिक्षा और स्वास्थ्य

शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य सेवाओं पर कर छूट ने सामाजिक कल्याण को बल दिया।

(घ) सामाजिक समानता

जीएसटी ने अमीर और गरीब दोनों को एक समान कर ढाँचे में लाकर आर्थिक समानता का मार्ग खोला।

 सांस्कृतिक प्रभाव

त्योहारों और परंपराओं से जुड़े सामान, जैसे दीपावली के दीये, राखी, हस्तशिल्प और हस्तकरघा, पर कम कर दर ने कारीगरों और शिल्पकारों को प्रोत्साहन दिया।

 राजनीतिक प्रभाव

जीएसटी मोदी सरकार के लिए एक “राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक” साबित हुआ। इससे उनकी “विकसित भारत” की नीति को बल मिला। विपक्ष ने कभी इसे “गब्बर सिंह टैक्स” कहा था, लेकिन समय ने सिद्ध किया कि यह राष्ट्र के आर्थिक भविष्य की नींव है।

राज्यों के साथ समन्वय कर मोदी सरकार ने संघीय ढाँचे को और मजबूत बनाया।

 अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

जीएसटी ने हिंदुस्तान को “ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस” रैंकिंग में ऊपर पहुँचाया। विदेशी निवेशकों के लिए यह संदेश गया कि हिंदुस्तान अब एक बड़ा बाज़ार है, न कि 28 राज्यों का बँटा हुआ कर ढाँचा।

 वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

  • IMF और वर्ल्ड बैंक ने हिंदुस्तान की प्रशंसा की।
  • चीन की तुलना में हिंदुस्तान ने कर पारदर्शिता में बढ़त बनाई।
  • “चीन प्लस वन” रणनीति के चलते कंपनियाँ अब हिंदुस्तान की ओर रुख कर रही हैं।

 राज्यवार प्रभाव

पूर्वी भारत (झारखंड, बिहार, ओडिशा, बंगाल)

यहाँ संसाधन आधारित उद्योग और खनन को लाभ हुआ।

उत्तर भारत

कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था को सस्ती मशीनरी और उर्वरक से लाभ।

दक्षिण भारत

आईटी, ऑटोमोबाइल और शिक्षा क्षेत्र को बड़ा फायदा।

पश्चिम भारत

गुजरात और महाराष्ट्र में व्यापार और निर्यात को नया बल।

 भविष्य की संभावनाएँ

मोदी सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक हिंदुस्तान विकसित राष्ट्र बने। जीएसटी इसमें निम्न तरह से योगदान करेगा:

  1. कर-आधार बढ़ेगा।
  2. राजस्व का बड़ा हिस्सा शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसंरचना में लगेगा।
  3. वैश्विक निवेश आकर्षित होगा।
  4. डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

 निष्कर्ष

जीएसटी केवल टैक्स सुधार नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय क्रांति है। यह आम जनता से लेकर उद्योगपति, किसान से लेकर स्टार्टअप, और गाँव से लेकर महानगर तक सभी को जोड़ता है।

मोदी सरकार ने इसे लागू कर यह सिद्ध कर दिया कि हिंदुस्तान अब पुराने कर ढाँचों और जटिलताओं से बाहर निकल चुका है।

2047 में जब हम स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेंगे, तो इतिहास लिखेगा कि जीएसटी रिफॉर्म ही वह आधारशिला थी, जिसने हिंदुस्तान को आत्मनिर्भर भारत से विकसित भारत बनाया।



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