हरियाणा/हिसार (राजेश सलूजा) : आज पूरे देश में शिक्षक दिवस बड़े उत्साह और सम्मान के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन भारत के महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को समर्पित है। परंपरानुसार विद्यालयों और संस्थानों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं सम्मान समारोह आयोजित किए जाते हैं।
हालांकि हाल के दिनों की घटनाओं ने शिक्षा जगत को गहरी चिंता में डाल दिया है। यह स्थिति विचारणीय है कि जिस दिन शिक्षक को सम्मानित किया जाना चाहिए, उसी दिन यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि क्या शिक्षक स्वयं विद्यालयों में सुरक्षित हैं?
एक समय था जब विद्यार्थी अपने अध्यापक का सम्मान करते थे और गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर माना जाता था। आज परिस्थितियाँ बदल रही हैं। अब कई बार अध्यापक ही बच्चों और अभिभावकों से भयभीत नज़र आने लगे हैं। यह बदलता हुआ परिदृश्य न केवल शिक्षा व्यवस्था के लिए बल्कि संपूर्ण समाज के लिए भी गंभीर संकेत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समाज और सरकार ने इस समस्या पर समय रहते ठोस पहल नहीं की तो इसके दूरगामी और घातक परिणाम सामने आएंगे। शिक्षा का स्तर गिर सकता है, अनुशासनहीनता बढ़ सकती है और भविष्य की पीढ़ी के संस्कारों पर गहरा असर पड़ेगा।
अतः इस शिक्षक दिवस पर केवल औपचारिकता तक सीमित न रहकर यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि शिक्षक की गरिमा और सुरक्षा समाज एवं सरकार दोनों की प्राथमिकता बने। तभी शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य—एक जिम्मेदार और संस्कारित नागरिक का निर्माण—पूरा हो सकेगा।
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10:09:00 pm
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