भारतीय विधिज्ञ परिषद चुनाव में नामांकन शुल्क 1.25 लाख रुपये किए जाने पर उठे सवाल, झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल
रांची: भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) द्वारा आगामी राज्य विधिज्ञ परिषदों (State Bar Councils) के चुनाव के लिए नामांकन शुल्क में भारी वृद्धि किए जाने के निर्णय पर अब कानूनी विवाद खड़ा हो गया है। झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता धीरज कुमार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए माननीय झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है।
धीरज कुमार ने अपनी याचिका में कहा है कि पहले जहां नामांकन शुल्क मात्र ₹10,000 (दस हजार रुपये) था, वहीं अब इसे बढ़ाकर ₹1,25,000 (एक लाख पच्चीस हजार रुपये) कर दिया गया है — जो कि बारह गुना से अधिक की वृद्धि है। उन्होंने इस निर्णय को न केवल असंगत और असंवैधानिक बताया है, बल्कि यह भी कहा कि यह कदम आम अधिवक्ताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।
“आम अधिवक्ताओं की भागीदारी पर ताला लगाने की कोशिश”
अधिवक्ता धीरज कुमार ने कहा कि इस तरह की अत्यधिक शुल्क वृद्धि से साधारण अधिवक्ता चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता परिषद का उद्देश्य सभी वर्गों के अधिवक्ताओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना होता है, परंतु यह निर्णय केवल धनवान और प्रभावशाली वकीलों के लिए चुनाव का रास्ता खोल देगा, जिससे परिषद में “पूंजीवादी संस्कृति” को बढ़ावा मिलेगा।
उनके अनुसार, बार काउंसिल का यह कदम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का भी उल्लंघन करता है, जो नागरिकों को समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
“लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आघात”
धीरज कुमार ने याचिका में यह भी उल्लेख किया है कि बार काउंसिल का यह कदम लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता परिषदें अपने आप में अर्ध-राजनैतिक संस्थाएं हैं, जो अधिवक्ताओं के अधिकार, कल्याण और प्रतिनिधित्व से जुड़ी हैं। ऐसे में नामांकन शुल्क को इतनी अधिक दर से बढ़ाना चुनाव की निष्पक्षता और समान अवसर की भावना को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा,
“यह केवल फीस की बात नहीं है, बल्कि एक आम अधिवक्ता की आवाज़ को दबाने की कोशिश है। वकालत पेशा एक बौद्धिक और नैतिक परंपरा का प्रतीक है, जिसे आर्थिक रूप से सीमित करना लोकतंत्र पर आघात है।”
न्यायालय से तत्काल रोक की मांग
याचिका में अधिवक्ता धीरज कुमार ने न्यायालय से इस निर्णय पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने (Stay Order) की मांग की है। उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि न्यायालय इस विषय में भारतीय विधिज्ञ परिषद को यह निर्देश दे कि वह पिछले चुनावों की तरह ही ₹10,000 के शुल्क पर नामांकन स्वीकार करे, ताकि सभी अधिवक्ताओं को समान अवसर मिल सके।
व्यापक असर की संभावना
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उच्च न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप करता है, तो इसका प्रभाव न केवल झारखंड, बल्कि संपूर्ण देश की राज्य विधिज्ञ परिषदों के चुनावों पर पड़ेगा।
क्योंकि यह मुद्दा अधिवक्ताओं के लोकतांत्रिक भागीदारी के अधिकार से जुड़ा है, जिससे बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अपने निर्णय की पुनर्समीक्षा (Review) करनी पड़ सकती है।
अधिवक्ता समुदाय में आक्रोश
राज्यभर के अधिवक्ताओं के बीच इस निर्णय को लेकर तीव्र असंतोष देखा जा रहा है। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने भी नामांकन शुल्क में की गई इस अत्यधिक वृद्धि को अन्यायपूर्ण और अव्यावहारिक बताया है। रांची, बोकारो, धनबाद और जमशेदपुर के बार एसोसिएशनों में इस विषय पर चर्चा शुरू हो गई है और जल्द ही संयुक्त प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से भारतीय विधिज्ञ परिषद को ज्ञापन सौंपे जाने की संभावना जताई जा रही है।
भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा नामांकन शुल्क को ₹1.25 लाख रुपये तक बढ़ाने का निर्णय अब केवल प्रशासनिक मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह अधिवक्ताओं के अधिकार और लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा सवाल बन गया है। अब सबकी निगाहें झारखंड उच्च न्यायालय के आगामी निर्णय पर टिकी हैं, जो देशभर के वकीलों की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।

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